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चलते चलते उन्ही राहों में मैंने लोगों को भागते देखा
रहा न गया मुझसे, जिद की आदत से जो मजबूर था
मैंने बहुत रोका, पर मैंने तो ठानी थी सबको हराऊंगा
दौड़ पड़ा मैं जो, पता न था की कभी वापस न मुड़ पाउँगा
फासला जब कुछ तय हुआ, एक पल मेरी नज़र औरों पर गयी
हैरान था की हर कोई मैं ही था, मात तो मेरी ही हुई !
(Acknowledgement: Rohit Ag)
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