Saturday, January 23, 2010

ग़ालिब कहते हैं...

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सब कुछ हो रहा है इस तरक्की के ज़माने में
मगर ये क्या गज़ब है के आदमी इन्सां नहीं होता

या तो दीवाना हँसे या तू जिसे तौफीक दे
वरना इस ज़माने में रह कर मुस्करा सकता है कौन?

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